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Ibn Al Nafis एक अजीम साइंसदान जिसे आज की मेडिकल साइंस ने भुला दिया।

Ibn Al Nafis एक अजीम साइंसदान जिसे आज की मेडिकल साइंस ने भुला दिया।
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Ibn  Al Nafis
प्रतीकात्मक तस्वीर।

Ibn Al Nafis: इब्न अल-नफीस (अलाउद्दीन अबू अल-हसन अली इब्न अबि अल-अज्म अल-कुर्सी अल-दमिश्की) का पैदाइश 1213 में सीरिया में हुआ था। वह एक अरब खानदान से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी शुरुआती तालिम साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में हासिल की। शुरुआती तालिम के बाद, उनकी दिलचस्पी चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ने लगी। अपनी इस दिलचस्पी का पैरवी करते हुए, उन्होंने दमिश्क स्थित नूरी अस्पताल में दस सालों से ज्यादा वक्त तक चिकित्सा की पढ़ाई की।

मुताला के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में अभ्यास करते हुए, वे इस क्षेत्र के एक महान विशेषज्ञ बन गए। उनकी इसी योग्यता के कारण सुल्तान सलाहुद्दीन अयूबी द्वारा स्थापित अल-नसेरी अस्पताल में उन्हें मुख्य चिकित्सक नियुक्त किया गया। अस्पताल में काम करने के साथ-साथ उन्होंने मिस्र के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में चिकित्सा का ज्ञान भी प्रदान किया।

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Ibn Al Nafis: अजीम साइंसदान इब्न अल-नफीस बाद में मिस्र चले गए, जहाँ उन्होंने अपने बची हुई जिंदगी में चिकित्सा के अभ्यास और तालीम को जारी रखा। वे मिस्र के सुल्तान बैबर्स के निजी चिकित्सक भी बने। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मुख्तलिफ अस्पतालों में मुख्य चिकित्सक के रूप में अपनी खिदमात जारी रखीं। बाद में, बहुत ज्यादा बीमार हो जाने के कारण, 74 साल की उम्र में मिस्र में उनका इंतकाल हो गया।

पल्मोनरी परिसंचरण (Pulmonary Circulation) का ईजाद किया

प्रतीकात्मक तस्वीर।

Ibn Al Nafis: कदीम वक्त में दिल के कार्य को लेकर गैलेन नामक साइंसदान का एक सिद्धांत प्रचलित था, जिसमें रक्त प्रवाह की प्रक्रिया को समझाया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, रक्त हृदय के दाएं भाग से बाएं भाग में छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से जाता है, वहां हवा के साथ मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों में प्रवाहित होता है। गैलेन ने यह भी कहा कि शिराओं (Veins) और धमनियों (Arteries) की प्रणालियाँ एक-दूसरे से पूरी तरह अलग होती हैं।

हालांकि, इब्न अल-नफीस ने गैलेन के इस सिद्धांत को नकारते हुए यह साफ किया कि हृदय के दाएं और बाएं हिस्सों के बीच कोई अदृश्य छिद्र नहीं होते हैं। उन्होंने यह बताया कि रक्त प्रवाह पल्मोनरी परिसंचरण (Pulmonary Circulation) की प्रक्रिया से होता है, जिसमें रक्त हृदय के दाएं वेंट्रिकल से फेफड़ों की ओर जाता है और फिर वहां से शुद्ध होकर बाएं वेंट्रिकल में प्रवेश करता है। इब्न अल-नफीस ने यह भी बताया कि रक्त प्रवाह हृदय की धड़कनों के कारण संभव होता है।

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Ibn Al Nafis: इब्न अल-नफीस ने शरीर विज्ञान (Physiology) और शरीर रचना विज्ञान (Anatomy) के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं। उनकी सबसे प्रसिद्ध खोज पल्मोनरी परिसंचरण थी, लेकिन इसके अलावा उन्होंने कोरोनरी परिसंचरण (Coronary Circulation) और केशिका परिसंचरण (Capillary Circulation) की प्रारंभिक संरचना की जानकारी भी प्रदान की।

इब्न अल-नफीस की तरफ से लिखी गई किताबें

प्रतीकात्मक तस्वीर।

Ibn Al Nafis: इब्न अल-नफीस ने “अल-मुजाज़” नामक एक अहम किताब लिखी, जिसमें उन्होंने मूत्राशय और गुर्दे की पथरी से संबंधित मौज़ू को तफसील से समझाया। इस किताब में उन्होंने गुर्दे और मूत्राशय के संक्रमणों पर भी गहराई से चर्चा की। इसके अलावा, उन्होंने “अल-शामिल फी अल-टिब्ब” (द कॉम्प्रिहेंसिव बुक ऑन मेडिसिन) नामक एक विस्तृत चिकित्सा विश्वकोश की रचना की योजना बनाई थी।

यह विश्वकोश 300 हिस्सो में लिखा जाना था, लेकिन वे अपनी मृत्यु से पहले केवल 80 हिस्से ही प्रकाशित कर सके, जिससे यह काम मुकम्मल ना हो सका। इसके बावजूद, यह चिकित्सा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाती है, क्योंकि इसमें उस वक्त की इस्लामी दुनिया में मौजूद संपूर्ण चिकित्सा ज्ञान का सार संग्रहित था। इब्न अल-नफीस ने अपने सभी किताबो और पुस्तकालयों को मंसूरी अस्पताल के नाम वसीयत कर दिया, जहां उन्होंने अपने आखिरी वक्त तक खिदमात अंजाम दिया।

Ibn Al Nafis: मुख्तलिफ वक्त पर चिकित्सा अनुसंधान जारी रखते हुए, इब्न अल-नफीस ने सर्जरी के तीन मरहलों की तसव्वुर पेश की। उनके मुआफिक, पहले मरहले में मरीद को सर्जरी के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। दूसरे मरहले में सर्जरी की जाती है, और तीसरे मरहले में मरीज को नियमित रूप से डॉक्टर से परामर्श और जाँच के लिए लौटना आवश्यक होता है।

यह इब्न अल-नफीस के बचपन से लेकर उनके आखिरी वक्त तक की मुख्तसर दास्तान है। उस दौर के महान मुस्लिम तबीबो में उनका नाम काबिल-ए-एतमाद और अजीम हस्तियों में गिना जाता है।

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