
AIMIM : दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन कस्टडी परोल पर बाहर आकर अपने चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं।
उनके साथ हथियारबंद दिल्ली पुलिस के जवान चल रहे हैं, जो उन्हें सुरक्षा घेरा प्रदान कर रहे हैं। किसी भी आम व्यक्ति या समर्थक को इस सुरक्षा घेरे के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
लगभग एक दर्जन पुलिसकर्मियों के बीच ताहिर हुसैन गलियों में घूम-घूमकर लोगों से ‘पतंग’ के निशान पर वोट देने की अपील कर रहे हैं। उनके पीछे-पीछे समर्थकों की भीड़ चल रही है, जो जोर-जोर से नारे लगा रही है – देखो-देखो कौन आया -“शेर आया, शेर आया!”
चुनावी प्रचार के दौरान ताहिर हुसैन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पोस्टरों से सजी संकरी गलियों से गुजरते हैं, जहां उनके समर्थन में लगाए जा रहे नारों की आवाज़ और तेज़ हो जाती है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने उन्हें मुस्तफ़ाबाद विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है।
खुद असदुद्दीन ओवैसी उनके समर्थन में चुनाव प्रचार कर रहे हैं और लोगों से वोट मांग रहे हैं।
ओवैसी कहते हैं, पांच साल से जेल में बंद ताहिर हुसैन को अदालत इंसाफ़ देगी, लेकिन आपको अपने वोट से उन्हें इंसाफ़ दिलाना होगा… अगर ताहिर हुसैन नहीं जीते, तो आपकी हिफ़ाज़त कौन करेगा?
चुनाव प्रचार के लिए ताहिर हुसैन की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें छह दिन की कस्टडी परोल दी है।
हालांकि, इस दौरान वे अपने घर नहीं जा सकते और हर शाम जेल लौटना अनिवार्य है। इसी कारण वे बिना रुके लगातार कई घंटों तक प्रचार में जुटे हुए हैं।
एक संकरी गली से गुजरते हुए वे एक महिला से कहते हैं, मेरे पास पोस्टर और बैनर के लिए पैसे नहीं हैं, लेकिन मेरा ख्याल अब आप सबको रखना है। पतंग का निशान भूलना मत!
ताहिर हुसैन ने बदले मुस्तफाबाद सीट के समीकरण?

AIMIM : उत्तर पूर्वी दिल्ली की मुस्तफ़ाबाद विधानसभा सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। इससे पहले यह क्षेत्र करावल नगर विधानसभा का हिस्सा था।
साल 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहे हाजी यूनुस ने यहां जीत दर्ज की थी। इस बार आदिल अहमद ख़ान को पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
कांग्रेस ने पूर्व विधायक हसन मेहदी के बेटे अली मेहदी को टिकट दिया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने करावल नगर के मौजूदा विधायक मोहन सिंह बिष्ट को ही उम्मीदवार बनाया है।
मुस्तफ़ाबाद, जो 2020 के सांप्रदायिक दंगों का गढ़ रहा था, यहां तकरीबन 2.6 लाख मतदाता हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, इस सीट पर 40% मुस्लिम और 60% हिंदू आबादी है।
अब इस त्रिकोणीय मुकाबले में ताहिर हुसैन के आ जाने से सारे समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का आरोप है कि ताहिर हुसैन के मैदान में उतरने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा, जिसका सीधा फायदा बीजेपी उठायेगी।

AIMIM : दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामेश्वर दयाल का मानना है, “मुस्तफ़ाबाद में कांग्रेस, आप और AIMIM—तीनों ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं। ऐसे में ताहिर हुसैन के आने से मुस्लिम वोट बंट सकते हैं, जिससे बीजेपी को सीधा लाभ मिल सकता है।”
हालांकि, वोट काटने के आरोपों पर पत्रकारो से बातचीत में ताहिर हुसैन ने सफाई देते हुए कहा, जब भी कोई व्यक्ति दलित, मुसलमान, वंचित और पिछड़े समाज के हक की आवाज़ उठाता है, तो उसे ‘वोट कटवा’ बता दिया जाता है।
उन्होंने आगे कहा, अगर हमारी पार्टी वोट कटवा होती, तो कांग्रेस और आप आपस में गठबंधन कर लेतीं। लेकिन दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि असल में कौन किसे गुमराह कर रहा है। अब जनता समझ चुकी है कि कांग्रेस और आप किस तरह वोटरों को गुमराह करने का प्रयास कर रही हैं।
स्थानीय लोगो का क्या है कहना ?

AIMIM : ताहिर हुसैन अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्हीं इलाकों का दौरा कर रहे हैं, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। जैसे ही वे अपने समर्थकों के साथ किसी गली में प्रवेश करते हैं, लोग उन्हें देखने के लिए अपने दरवाज़ों और दहलीज़ों पर खड़े हो जाते हैं।
राजीव गांधी नगर की में, एक छोटी सी दुकान चलाने वाली बुशरा के घर के बाहर कांग्रेस का झंडा लगा है, लेकिन ताहिर हुसैन को देखकर वे उत्साहित नज़र आती हैं।
वो कहती हैं, “बहुत समय बाद ताहिर को देखा है। उन्होंने दंगों के दौरान मुसलमानों का पूरा साथ दिया था। उन्हें जानबूझकर फंसाया गया है।” हालांकि, वे यह भी जोड़ती हैं, “ताहिर अच्छे इंसान हैं, लेकिन महिलाएं उसी पार्टी को समर्थन देंगी, जो उन्हें सुविधाएं दे रही है।
पार्टियों के कार्यकर्ता आकर झंडे लगा देते हैं, जिसे चाहे उतार लो और जिसे चाहे लगा लो, इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।थोड़ा आगे बढ़ने पर काशिफ से मुलाकात होती है, जो खुद को ओवैसी का समर्थक बताते हैं, लेकिन ताहिर हुसैन को लेकर उनकी सोच अलग है।
दिल्ली दंगों की घटनाओं को याद करते हुए वे नाले की तरफ़ इशारा कर कहते हैं, “यही वह नाला है, जहां दंगाइयों ने लोगों को मारकर फेंक दिया था और बाद में उनकी लाशें निकाली गई थीं।”
हालांकि, वे ताहिर को वोट देने से झिझकते हैं और कहते हैं, “अगर हम ‘पतंग’ को वोट देंगे तो आम आदमी पार्टी हार सकती है और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा। हम अपना वोट बेकार नहीं करना चाहते। आम आदमी पार्टी हमारी मजबूरी है, लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं जिसकी हवा चल रही हो।”
वे आगे बताते हैं, “पार्षद चुनाव में यहां केजरीवाल को एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अगर कांग्रेस मजबूत होती, तो लोग उनके उम्मीदवार को वोट देते।”
इसी तरह की बात स्थानीय निवासी शफीक भी करते हैं। वे कहते हैं, “लोगों को ताहिर हुसैन के साथ सहानुभूति तो है, लेकिन वोट देने के लिए कोई तैयार नहीं है। यह सच है कि इस सीट पर केवल मुस्लिम वोटों के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता। हिंदू वोट भी चाहिए, लेकिन हिंदू ताहिर को वोट नहीं देंगे, इसलिए उनके जीतने की संभावना नहीं है।”
ये भी पढ़े – प्रयागराज Kumbh में भगदड़ पर खड़गे के बयान से मचा विवाद, धनखड़ ने कहा बयान वापस लें जाने क्या है पूरा मामला?शरीफ, जिनकी उम्र 72 साल है वो भी, इसी डर को ज़ाहिर करते हैं। वे कहते हैं, “ताहिर सैफ़ी बिरादरी से आते हैं, जिनके यहां 10-12 हज़ार वोट हैं। अगर ये सारे वोट उन्हें मिल गए तो बीजेपी की जीत पक्की हो जाएगी।”
दूसरी तरफ, ब्रिजपुरी पुलिया पर पिछले 25 साल से पटरी पर दुकान लगाने वाले हुसैन खुद को बीजेपी समर्थक बताते हैं। वे कहते हैं, “यहां 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, लेकिन वे तीन उम्मीदवारों के बीच बंट गए हैं। असली मुकाबला आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच है।”
ब्रिजपुरी पुलिया से कुछ किलोमीटर आगे शिव विहार इलाका आता है, जो हिंदू बहुल क्षेत्र है। यहां ताहिर हुसैन के न तो पोस्टर दिखते हैं, न ही उनका कोई प्रभाव नज़र आता है।
नितिन कटारिया, जो कटारिया वेल्डिंग नाम से अपनी दुकान चलाते हैं, कांग्रेस पर नाराजगी जताते हुए कहते हैं, “उन्होंने हमारे यहां मंच लगाया, लेकिन उसका रुख मुस्लिम बहुल मुस्तफ़ाबाद की तरफ़ रखा। इससे साफ पता चलता है कि उनके लिए मुस्लिम वोट ज़्यादा ज़रूरी हैं।”
वे आगे कहते हैं, “हमारी सीट मुस्लिम बहुल ज़रूर है, लेकिन इसका नाम मुस्तफ़ाबाद है। हमें इसे बदलकर शिव विहार करना चाहिए। यह हमारी पुरानी मांग है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।”
कटारिया यह भी जोड़ते हैं, “यहां हिंदू आबादी ज्यादा है, लेकिन वे कम संख्या में वोट डालने जाते हैं। अगर इस बार हिंदुओं ने ज्यादा मतदान किया, तो बीजेपी उम्मीदवार की जीत तय है।”
आखिर हैं कौन ताहिर हुसैन ?

AIMIM : दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में 23 फरवरी से 26 फरवरी 2020 के बीच भयंकर दंगे भड़के थे, जिनमें 53 लोगों की मौत हुई थी। दिल्ली पुलिस के अनुसार, मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे।
उस समय ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी के पार्षद थे, लेकिन दंगों में उनका नाम सामने आने के बाद पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया। उनके खिलाफ आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या समेत कई गंभीर मामले दर्ज किए गए। अंकित शर्मा की लाश 26 फरवरी को ताहिर हुसैन के घर के नजदीक एक नाले में मिली थी।
चुनावी हलफ़नामे के मुताबिक, ताहिर हुसैन के खिलाफ दिल्ली पुलिस की 10 और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की 1 एफआईआर दर्ज है। हालांकि, पत्रकारों से बातचीत में ताहिर खुद को निर्दोष बताते हैं और कहते हैं, “मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा है, वहां से मुझे इंसाफ मिलेगा।”
चुनावी हलफनामे के मुताबिक, ताहिर हुसैन के पास करीब 42 लाख रुपये की चल संपत्ति है, जबकि उनकी पत्नी के पास लगभग 43 लाख रुपये की संपत्ति है।
अचल संपत्ति की बात करें तो ताहिर हुसैन के पास 8.85 करोड़ और उनकी पत्नी के पास 9 करोड़ से अधिक की संपत्ति है।
उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बच्चे हैं। उनका बेटा मोहम्मद शादाब हुसैन अपने पिता के चुनावी प्रचार की पूरी जिम्मेदारी संभाल रहा है। वहीं, उनकी बेटी का नाम राफ़िया ज़ारा हुसैन है।
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