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Khalid Bin Walid: इस्लाम के अजीम सिपहसालार

ख़ालिद बिन वलीद: इस्लाम के अजीम सिपहसालार
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Khalid Bin Walid
प्रतिकात्मक तस्वीर।

Hajrat Khalid Bin Walid: हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) एक ऐसे जांबाज और बहादुर मुजाहिद थे, जिनकी बहादुरी और जंगी सलाहियत ने न केवल इस्लाम के मानने वालो को मुतास्सिर किया, बल्कि उनके दुश्मनों के दिलो में रौब डाल दिया। उनकी सुजात का असर इतना गहरा था कि इस्लाम के मुखालिफिन आज भी यह सोचकर कांपते हैं कि अगर फिर से कोई ख़ालिद बिन वलीद पैदा हो गया, तो क्या होगा! इसलिए वे चाहते हैं कि उनके माजी को भुला दिया जाए, उनकी बहादुरी के किस्से लोगों तक न पहुंचें, और उनकी सीरत को पढ़ने से रोका जाए।

लेकिन माजी इस बात का गवाह है कि जब कोई असरदार शख्सियत दुनिया में आती है, तो उसकी सीरत हमेशा लोगों को मुतास्सिर करती है और उनकी सोच पर गहरा असर छोड़ती है। ख़ालिद बिन वलीद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) भी उन्हीं अजीम हस्तियों में से एक थे, जिनके बारे में जानना और सीखना हर बहादुर इंसान के लिए जरूरी है।

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Hajrat Khalid Bin Walid: आप सहाबा की फेहरिस्त में ऐसे सिपाही थे, जिन्हें अल्लाह के रसूल ﷺ ने “सैफुल्लाह” (अल्लाह की तलवार) का लकब दिया था। आपने अपने दौरे हयात में 125 जंगो में हिस्सा लिया और हैरत की बात यह है कि किसी भी जंग में आपको शिकस्त नहीं मिली। आपकी जंगी हिकमत-ए-अमली, शुजात और ईमान की मजबूती ने आपको तारीख के सबसे अजीम सिपहसालार में से एक बना दिया।

अल्लाह की तलवार: हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ी अल्लाहु अन्हु)

Hajrat Khalid Bin Walid: हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) का ताल्लुक कुरैश के एक बावकार खानदानसे था। उनके वालिद, वलीद बिन मुग़ीरा, मक्का के बावकार शख्सियतों में गिने जाते थे। उनकी वालिदा, हज़रत बीबी लुबाबा सुगरा (रज़ी अल्लाहु अन्हा), उम्मुल मोमिनीन हज़रत बीबी मैमूना (रज़ी अल्लाहु अन्हा) की बहन थीं। इस तरह, उनका खानदान मक्का के रसूखदार खानदानों में से एक था।

ख़ालिद बिन वलीद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) अपनी बहादुरी और जंगी सलाहियत के लिए मशहूर थे। जंग की रणनीति और फौजी महारत में वे सहाबा-ए-किराम (रज़ी अल्लाहु अन्हुम) में अहम मुकाम रखते थे। इस्लाम कुबुल करने से पहले, वे और उनके वालिद इस्लाम के सख्त मुखालिफ थे। वे जंगे-बद्र और जंगे-उहुद में काफिरों की फौज के साथ रहे और मुसलमानों को भारी नुकसान पहुँचाई।

Hajrat Khalid Bin Walid: लेकिन अल्लाह ने उनके दिल में हिदायत का नूर पैदा किया, और इस्लाम की सच्चाई उनके दिल में घर कर गई। 7 हिजरी में, वे खुद मक्का से मदीना आए और पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की खिदमत में हाज़िर होकर इस्लाम कबूल कर लिया। इस्लाम अपनाने के बाद, वे इस्लाम के अजीम सिपहसालारों में से एक बन गए और हमेशा अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते रहे।

इस्लाम कुबुल करने से पहले की ज़िन्दगी

प्रतीकात्मक तस्वीर।

Hajrat Khalid Bin Walid: हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह तआला अन्हु, जो अपनी बहादुरी, जंगी सलाहियत और सूझबूझ के लिए मशहूर थे, का जन्म 592 ईस्वी में अरब के एक बावकार खानदान में हुआ था।

इस्लाम कुबुल करने से पहले वे इस्लाम के कट्टर मुखालिफ थे, लेकिन 628 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद ﷺ से मुतास्सिर होकर इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद वे इस्लामी फौज में शामिल हो गए और मुत्ता की जंग में हिस्सा लिया। इस जंग के दौरान जब सभी सिपह सालार शहीद हो गए, तो फौज के भीतर ही उन्हें कयादत सौंप दिया गया। उन्होंने अपनी बहादुरी और सूझबुझ का तारूफ दिया, जिससे इस्लामी फौज को हार से बचा लिया। जंग इतना शदीद था कि उनकी नौ तलवारें टूट गईं, लेकिन वे डटे रहे। उनकी इस बहादुरी से विशाल रोमन सेना में वहशत पैदा हो गई, और उन्होंने हार के कगार पर खड़ी इस्लामी फौज को महफूज निकाल लिया।

बैज़न्टाइन और सस्सानी साम्राज्यों को कई जंगो में धूल चटाई

Hajrat Khalid Bin Walid: हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह तआला अन्हु इस्लामी फौज के महान सिपहसालार रहे हैं। उन्होंने उस दौर की दो सबसे बड़ी महाशक्तियों—रोमन साम्राज्य (क़ैसर-हरक्युलिस) और फारसी साम्राज्य (क़िसरा-उर्दशेर) की ताकतवर फौजो को हर दिया और अल्लाह के करम से इन साम्राज्यों की ताकत को चकनाचूर कर दिया।

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खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह तआला अन्हु हर जंग में फातेह रहे। उनकी कयादत की सलाहियत ने एक ओर रोमन साम्राज्य (बैज़न्टाइन) को यूरोप तक महदूद कर दिया, तो दूसरी ओर फारस (ईरान) में मौजूद ताकतवर सस्सानी हुकूमत का वजूद ही खत्म कर दिया।

Hajrat Khalid Bin Walid: गौरतलब है कि हर जंग में इस्लामी फौज की तादाद दुश्मन फौजो के मुकाबले में बहुत कम होती थी, लेकिन खालिद बिन वलीद ने अपनी जंगी हिकमत ए अमली, बहादुरी और सूझबूझ से हर जंग में दुश्मनों को धूल चटाई।

उनकी इसी बहादुरी और सुजाअत को देखते हुए पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने उन्हें “सैफुल्लाह” (अल्लाह की तलवार) की खिताब से नवाजा।

जंग के बाद एक अजीम सिपहसालार की जिंदगी

प्रतीकात्मक तस्वीर।

Hajrat Khalid Bin Walid: इस्लामी जंगो और लड़ाइयों का ज़िक्र किया जाए तो हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह तआला अन्हु का नाम खुशुशी तौर से लिया जाता है। उनकी हर जंग में बहादुरी, रणनीतिक चतुराई और जंगी सलाहियत देखने को मिलता था, जिससे दुश्मनों के हौसले पस्त हो जाते थे। हज़रत खालिद बिन वलीद दुनिया के अकेले ऐसे सिपहसालार थे जिन्होंने अपने पूरे दौरे हयात में एक भी जंग नहीं हारा।

करीब 125 से अधिक जंगो में फातेह रहने वाले इस बहादुर जंगजु और सिपहसालार  को सैफुल्लाह (अल्लाह की तलवार) कहा जाता है। अपनी जिंदगी के आखिरी मरहले में वे अक्सर कहते थे, “मेरे जिस्म का कोई ऐसा हिस्सा नहीं बचा जहां तलवार, भाले या तीर के घाव न लगे हों, लेकिन फिर भी मुझे जंग के मैदान में शहीद होने नसीब नहीं हुआ।” वे मानते थे कि एक बहादुर जंगजु के लिए बिस्तर पर मौत को गले लगाना बदकिस्मती होती है।

Hajrat Khalid Bin Walid: उनके साथी उन्हें दिलासा देते हुए कहते थे, “आप अल्लाह की तलवार थे, और अल्लाह की तलवार कभी टूट नहीं सकती थी। अगर आप युद्ध में हार जाते, तो दुश्मन कहते कि अल्लाह की तलवार कमजोर पड़ गई।”

इस्लाम के इस अजीम जंगजु हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह तआला अन्हु ने 21 हिजरी में बीमारी की वजह से होम्स (सीरिया) में इस दुनिया ए फानी को अलविदा कह दिया। उन्हें वहीं सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया, और उनकी याद में उसी मकाम पर एक मस्जिद तामीर की गई, जो आज भी उनकी बहादुरी की मिसाल पेश करती है।

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